पक्षियों का कलरव,
पानी की कलकल
फूलों की सुगंध
सब कुछ खो गया
कंकरीट के जंगल में।
मशीनी मानव,
इंसान रुपी दानव,
अबलाओं की चीखें,
मानवता का ह्रास,
इस बनावटी दुनिया में।
सब सुविधाएं इस दुनिया में,
नहीं है तो केवल-
मानसिक शांति,
आपसी प्रेम, आत्मीयता एवं बंधुत्व,
इस बनावटी दुनिया में।
© निशान्त पन्त "निशु"
पानी की कलकल
फूलों की सुगंध
सब कुछ खो गया
कंकरीट के जंगल में।
मशीनी मानव,
इंसान रुपी दानव,
अबलाओं की चीखें,
मानवता का ह्रास,
इस बनावटी दुनिया में।
सब सुविधाएं इस दुनिया में,
नहीं है तो केवल-
मानसिक शांति,
आपसी प्रेम, आत्मीयता एवं बंधुत्व,
इस बनावटी दुनिया में।
© निशान्त पन्त "निशु"
No comments:
Post a Comment