Wednesday, March 27, 2013

आम आदमी

हम आम आदमी हैं, पिसते आये हैं.
लेकिन ये कब तक चलेगा?
हम आम आदमी हैं, लुटते आये हैं.
लेकन ये कब तक चलेगा?

हम आम आदमी हैं, भ्रष्ट नेताओं ने हमारा खून चूसा है.
हम कब तक अपना खून चुसवाएंगे?
ये तो भ्रष्ट नेता है, इनका पेट कभी नहीं भरता है!
ये तो आम जनता का खून चूसते आये है, और चूसते रहेंगे.

जनता को बेवक़ूफ़ बना ये सत्ता में आते हैं.
कुर्सी पाने के बाद जनता को भूल जाते हैं.
हम आम जनता है, सब हमारे हाथ में है.
इस बार इन पापियों को सबक सिखाना है.
ईमानदार व्यक्ति को ही अपना मत देना है.

आम आदमी की ताकत का एहसास इन देश द्रोहियों को दिलाना है.
इस बार के चुनाव में इनको नाकों चने चबवाना है.


साभार
निशांत "अकेला"

Thursday, March 21, 2013

सुबह

रोज़ सुबह जब ठंडी हवा, चेहरे को छू कर जाती है.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

रोज़ सुबह जब सूरज की किरणें, चेहरे को छू जाती हैं.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

रोज सुबह जब चिड़ियों की चहचाहट, कानों में गूंजा करती है.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

रोज सुबह जब नदियों की कलकल, कानों में सुनाई देती है.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

साभार
© निशान्त पन्त

Wednesday, March 20, 2013

चलो फिर से वर्तमान में आ जायें

हर तरफ गरीबी है, हर तरफ बेबसी है.
हर तरफ लाचारी है, हर तरफ बेकारी है.
मासूम जनता की, बस यही एक बीमारी है.

देश में हाहाकार है, हर तरफ बेरोजगार है.
दो वक़्त की रोटी नहीं, किस्मत बड़ी बेकार है.
सोचता है दिल यही, कि वो कितना लाचार है.

सोचता था जो कभी, पढ़ लिख कर रोजगार पायेगा.
क्या पता था मासूम को, सब मिटटी में मिल जायेगा?
टूट जायेगा हर सपना, भविष्य बड़ा रुलाएगा.

सोचता है कि वो दिन बचपन के बड़े सुहाने थे.
दादी की कहानियां और मस्ती के फ़साने थे.
जब रोटी के लिए नाकों चने ना चबाने थे.

काश वो बचपन के दिन, लौट के फिर आ जायें!
और हम अपनी मां के आँचल में छुप जायें!
पर ये अब मुमकिन नहीं, चलो फिर से वर्तमान में आ जायें.


© निशान्त पन्त