Wednesday, January 1, 2020

"मैं झुकने को नहीं कहता"

स्वरचित मौलिक रचना
कविता

"मैं झुकने को नहीं कहता"

मैं झुकने को नहीं कहता।
मैं रुकने को नहीं कहता।
मैं सोचने को हूँ कहता।
आत्मचिंतन को हूँ कहता।

जो बीत गयी वो बीत गयी।
अब आगे की बात करो।
थोड़ा मैं बढूं , कुछ तुम बढ़ो।
जीवन का नया स्वाद चखो।

-
© निशान्त पंत

खामोश हूँ मैं

"खामोश हूँ मैं"

एक खामोशी सी है,
है एक सिरहन सी,
मीठी सी याद है,
खुशी भरे दिन की।
खामोश हूँ मैं,
या किसी गम
में मसरूफ हूँ।
अकेलेपन में
कहीं गुम हूँ मैं।
जीवन की किताब हूँ मैं,
या किताब का फटा
पन्ना किसी के लिए।
सोचा न था, दिन ऐसा
भी आयेगा,
जब मन मेरा यूँ,
अंधेरे में खो जायेगा।
अच्छा है खामोश हूँ,
मैं खामोश सैलाब हूँ।

-
निशान्त पंत 'निशु'

रिश्ते नाते - एक फॉरमैलिटी

रिश्ते नाते - एक फॉरमैलिटी

साथ खेलना, साथ झगड़ना
साथ मे खाना, और साथ में पीना,
साथ में सब त्योहार मनाना
सबकी यह दिनचर्या थी।
दूर होने पर बजती,
फ़ोन की घंटी थी।

आज आ गयी फेसबुक तो,
नाम के रह गए रिश्ते नाते।
सब फेसबुक फ्रेंड बन जाते,
चाहे हो त्योहार , जन्मदिन।
बधाई फेसबुक पर ही देते।

रिश्ते नाते सब फॉर्मेलिटी,
प्यार मोहब्बत सब फॉर्मेलिटी।
ऐसी सोच का परित्याग करो,
आओ मिल-जुल कर सब,
नए रिश्ते की शुरुवात करो।

-निशान्त पंत

हिमालय

"हिमालय"

भारत माँ का मुकुट हिमालय
हिम् खंडों से बना हिमालय,
ऊंची ऊंची चोटी इसकी,
हिम की चादर ओढ़े रहतीं,
लगती कितनी पावन निर्मल,
यह माँ गंगा का उद्गम स्थल,
जलधारा अनेकों बहतीं कल-कल,
भोले बाबा का घर हिमालय,
कितना सुंदर है हिमालय।
भारत माँ का मुकुट हिमालय
हिम् खंडों से बना हिमालय।


-
© निशान्त पन्त 'निशु'