Saturday, February 21, 2015

मूक दर्शक

कोई मस्ताना कहता है,
कोई परवाना कहता है।
मेरे दिल की गहराई में झांको,
तेरा चेहरा झलकता है।

तू मुझसे चली गयी,
मेरे दिल को अखरता है।
तू मुझसे दूर है लेकिन,
दिल के करीब लगती है।

मैं तेरे प्यार में पागल,
तू मेरे प्यार की दीवानी।
ये तेरा दिल समझता है,
या मेरा दिल समझता है।

इस दुनिया को तेरा मेरा,
रिश्ता बेमाना लगता है।
हमारे रिश्ते की पवित्रता को,
केवल खुदा समझता है।

ये दुनिया वाले लोग हैं,
केवल वही चार लोग।
जिनका नाम ले ले कर,
रिश्तेदार उलाहना देते हैं।
कि तुमने किया गलत कुछ भी,
बोल बोल कर हमारी जान ले लेंगे।

ना बोले पलट कर कुछ भी,
तब भी यही प्रक्रिया होगी।
नहीं तो भरी महफ़िल में,
द्रोपदी सी चीर हरण होगी।

इन सबसे बचना है तो,
बुलंद अपनी आवाज करो।
नहीं तो मूक दर्शक से,
तालियाँ बजाओ तुम।


© निशान्त पन्त "निशु"

Thursday, February 19, 2015

बनावटी दुनिया

पक्षियों का कलरव,
पानी की कलकल
फूलों की सुगंध
सब कुछ खो गया
कंकरीट के जंगल में।

मशीनी मानव,
इंसान रुपी दानव,
अबलाओं की चीखें,
मानवता का ह्रास,
इस बनावटी दुनिया में।

सब सुविधाएं इस दुनिया में,
नहीं है तो केवल-
मानसिक शांति,
आपसी प्रेम, आत्मीयता एवं बंधुत्व,
इस बनावटी दुनिया में।


© निशान्त पन्त "निशु"

Wednesday, February 11, 2015

सर्वश्रेष्ठ है मानव जीवन

जीवन चक्र यह दुनिया का, जो आया है वो जायेगा।
माटी की मूरत है इन्सान, एक दिन माटी में मिल जायेगा।
घर-मकान और ये धन-दौलत, सब पीछे ही रह जायेगा।

मत भागो तुम धन के पीछे, रिश्ते नातों का मान रखो।
माता-पिता की सेवा करने का, तुम मन में संकल्प रखो।

सर्वश्रेष्ठ है मानव जीवन, बड़े जतन से मिलता है।
सब कुछ हाथ में तेरे बन्दे, मौका न बार-बार मिलता है।

बोल न बोलें बुरे किसी से, सभी से मन में प्रेम रखें।
धन से मदद करें न चाहे, पर वचनों को मधुर रखें।

करो सभी कुछ इस जीवन में, पर इतना भी ध्यान रहे।
जब हो अंतिम घड़ियाँ जीवन की, मन में न कोई संताप रहे।

केवल धन-दौलत के पीछे, कभी न पूरा ध्यान रहे।
मृत्यु कड़वा सच है जीवन का, यह हमेशा संज्ञान रहे।

जीवन चक्र यह दुनिया का, जो आया है वो जायेगा।
माटी की मूरत है इन्सान, एक दिन माटी में मिल जायेगा।
घर-मकान और ये धन-दौलत, सब पीछे ही रह जायेगा।

© कवि "निशान्त पन्त"