Sunday, December 4, 2016

जय हो हिन्द की सेना

रक्तरंजित हो चला है,
धरती का यह स्वर्ग।
पाकिओं की साजिश है,
जिनका होगा बेड़ा गर्क।
सेना हरदम तैयार है,
खोदने को इनकी कब्र।

देश नहीं झुकने देंगे,
जब तक अंतिम सांस है।
यही देश के सैनिक से,
जन-जन की आस है।

चाहे कितना षडयंत्र रचा ले,
ये पाक परस्ती भिखमंगे।
पर देश के हर सैनिक के आगे,
ये अपनी जान की भीख मांगे।

देश का सैनिक देश के खातिर,
जब भी हथियार उठाता है।
उसका एक एक वार,
दुश्मन का सीना छलनी करता है।

जय हो हिन्द की सेना,
जो देश की रक्षा करती है।
देश की खातिर जो,
जीवन का बलिदान करती है।"

-© निशान्त पन्त "निशु"

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी

देखो चोट लगी है, काला धन रखने वालों को।
सारे देखो लामबंद हुए हैं, नोटबंदी की खिलाफत को।

देश हित के फैंसले में, आम जन-जन साथ है।
मोदी तुम लगे रहो, सारे काला बाज़ारी त्रस्त हैं।

-© निशान्त पन्त "निशु"

Saturday, October 29, 2016

वो सैनिक कहलाते हैं।

लेकर दीपक अपने हाथों में,
आज एक नया संकल्प करो।
सैनिक का सम्मान करोगे,
तुम यह दृढ़ निश्चय करो।

हमारी रक्षा करने हेतु,
जो जीवन दांव लगाते हैं।
मातृभूमि खातिर जो,
अपनी जान लुटाते हैं।
वो सैनिक कहलाते हैं,
वो सैनिक कहलाते हैं।

छोड़ के अपनी माँ का आँचल,
अपने गांव के प्यारे जंगल,
मातृभूमि की रक्षा हेतु,
जो सैनिक धर्म निभाते हैं,
वो सैनिक कहलाते हैं,
वो सैनिक कहलाते हैं।

खा कर रूखी-सूखी रोटी,
हिम खण्डों के बीच में रह कर।
कड़ी ठण्ड को सह कर भी,
जो तिरंगे को फहराते हैं।
वो सैनिक कहलाते हैं।
वो सैनिक कहलाते हैं।

सम्मान करोगे सेना का,
आज कसम यह खा लो तुम।
नहीं तो इस भारत भूमि की,
सच्ची सन्तान नहीं हो तुम।

-© निशान्त पन्त "निशु"

Wednesday, August 31, 2016

भोले बाबा

तू ही शून्य है, तू ही सत्य है
बाकि सब कुछ झूठ है।
भोले बाबा तेरे दरबार में,
ही सब कष्टों छूट है।

तू ही जीवन है, तू ही मृत्यु।
तू ही सबका पालनहार है।
जो भी भजता तेरा नाम,
पूरे होते उसके काम हैं।

पी कर हलाहल बाबा तुमने,
देव जनों के कष्ट हरे।
कर तांडव तुमने बाबा,
दुष्टों के भी प्राण हरे।

तुम ही आदि हो, तुम ही अंत हो।
तुम ही जीवन का आधार हो।
मेरे प्यारे भोले बाबा
तुम से ही ये सारा संसार है।

--© निशान्त पन्त "निशु"

निवेदन है कि मेरा नाम हटा कर कविता आगे प्रेषित न करें। ऐसा करने से लेखन की भावनायें आहत होती हैं।

Sunday, August 21, 2016

बेटी

यह कविता देश की दोनों बेटियों को समर्पित है जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीतकर देश का मान सम्मान बढ़ाया है एवं उन लोगों के लिये कटाक्ष है जो कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं, या बेटी होने पर उपेक्षा करते हैं।

बेटी


जन्म लिया कन्या ने घर में, सन्नाटा पसर गया।
माँ-बाप, दादा-दादी का सपना बिखर गया।
चाहत थी सबको बेटे की, जो आगे वंश बढ़ाएगा।
क्या पता था, सबका सपना टूट जाएगा।

हुई बड़ी, बेटी धीरे-धीरे, नव यौवन में प्रवेश हुआ।
उसने खेल-कूद को अपना जीवन ठान लिया।
सबने सोचा लड़की है, यह क्या कर पायेगी!!
घर से बाहर निकल कर, केवल ठोकर खायेगी।

उसने जिद न छोड़ी, हिम्मत से काम लिया।
अपनी मेहनत के दम पर, खेलों में भाग लिया।
हो सफल उस लड़की ने, माँ-बाप को श्रेय दिया।
अश्रुपूर्ण नेत्रों से, माँ-बाप ने आशीर्वाद दिया।


-© निशान्त पन्त "निशु"

Monday, June 6, 2016

प्यासी धरती

प्यासी धरती पुकार रही है,
इन काले काले मेघों को।
अब तो बरसा दो जल तुम,
और प्यास बुझा दो मेरी तुम।

सुन करुण पुकार इस धरती की,
आकाश में मेघ छाये हैं,
जल साथ में लाये हैं।
प्यास बुझाने को धरती की,
वो आतुर हैं, वो व्याकुल हैं।

--© निशान्त पन्त "निशु"

Thursday, May 5, 2016

माँ

नौं माह गर्भ में रख कर,
रक्त से अपने पोषित कर,
कड़ी वेदना सह कर भी,
नव जीवन का निर्माण किया।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।

दुनिया में आकर शिशु ने,
जो पहला शब्द उदघोष् किया,
वो करता इंगित उस स्त्री को,
जिसने हमको जन्म दिया।

"माँ" शब्द के उदघोष् मात्र से,
जिस स्त्री का मन विभोर हुआ।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।

खुद भूखी रह कर जो माँ,
बच्चों की अन्नपूर्णा हुई।
गर्मी में पंखा झलकर, हमें सुलाती,
खुद स्वेद से सराबोर हुई।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।

-© -निशान्त पन्त "निशु"

Sunday, May 1, 2016

जीवन में आवश्यक!

जीवन में आवश्यक हैं कुछ बदलाव।
अन्यथा जीवन में आ जायेगा ठहराव।
जीवन नाम है चलते जाना
हमेशा मुस्कुराना, गुनगुनाना।
अपनाओ हंसी और संजीदगी,
थोड़ी ख़ुशी और दीवानगी।
ठुकरा दो तुम अहम् को,
अपना लो तुम प्रेम को।
ऐसे जियो हर दिन को तुम,
जैसे हो वो अंतिम दिन।
खुशियाँ ही खुशियाँ तुम बाँटो,
ग़मों के सबको तुम हर लो।

--© निशान्त पन्त "निशु"

Friday, April 8, 2016

तथाकथित सेक्युलर नेताओं की वोटों की भूख

वोटों के भूखे तथाकथित नेताओं के ऊपर एक व्यंग्यात्मक कविता लिख रहा हूँ। वस्तुतः सभी को मेरी अन्य कविताओं की भांति पसंद आएगी। इस कविता से मेरी मंशा किसी के ह्रदय को चोट पहुँचाने की नहीं है। यह एक व्यंग्य है व्यंग्य की भांति लिया जाये।

तथाकथित सेक्युलर नेताओं की वोटों की भूख:-

ये केवल वोटों के भूखे, कपटी कुटिल शिकारी हैं।
मौके पर चौका मारने की, इनको अदभुत बीमारी है।

सूंघ कर वोटों की खुशबु, ये दौड़े चले आते हैं।
जहाँ न दिखे वोट बैंक इनको, ये अंतर्ध्यान हो जाते हैं।

इनकी महिमा का अब मैं, क्या गुणगान करूँ।
छलिया हैं ये, सबको छलते, क्या महिमागान करूँ।

जेनयू का दंगल याद है? इसमें ये सारे कूदे थे।
वोटों की भूख के पीछे, भारत माँ को भूले थे।

दादरी में वोटों के पीछे, क्या विधवा विलाप भूल गए?
मालदा के घटनाक्रम पर, ये फिर से अंतर्ध्यान हुए।

सर्वधर्म सम्मान करो तुम, पर धर्म का अपने मान रखो।
सेक्युलर बनने की खातिर, हिन्दू हित को न ताक पर रखो।

अपनी भूख मिटाने में ये, आम जन को भूल गए।
तनख्वाहें लाखों में अपनी, करके अंतर्ध्यान हुए।

--निशान्त पन्त

Sunday, February 21, 2016

आरक्षण की आग

आरक्षण की आग लगी है
देखो कोने कोने में।
सामान्य वर्ग के शोषित
बैठे हैं वीराने में।

देना है आरक्षण तो उसका
आर्थिक आधार करो।
सभी वर्गों के शोषितों
का आर्थिक उत्थान करो।

वोटों की रोटी के भूखे
इस देश के नेता हैं।
इनको तो बस जनता को
आपस में लड़ाना आता है।

सबसे मेरी विनती है
आरक्षण की न मांग करो।
आओ मिलकर जातिगत
आरक्षण को ख़त्म करो।


--© निशान्त पन्त "निशु"

Thursday, January 21, 2016

आईना

आईना हूँ, सच ही दिखाता हूँ।
इंसान नहीं, जो फितरत बदल लूँ।

-- निशान्त पन्त "निशु"