Wednesday, November 4, 2015

तथाकथित असहिष्णुता - व्यंग्य

राजनीति से प्रेरित होकर असहिष्णुता को मुद्दा बनाकर पुरुस्कार वापस करने वाले तथाकथित लेखकों, साहित्यकारों, नेताओं, अभिनेताओं व अन्य पर एक व्यंग्यात्मक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ संभवतः मेरी अन्य कविताओं की भातिं ही आप इसे पसंद करेंगे।

तथाकथित असहिष्णुता - व्यंग्य

सोचो उन पर क्या बीती है,
पीछे पच्चीस सालों में।
दूर हुए वो जन्मभूमि से,
भटके दर दर सालों में।

तब कहाँ थे ये नेता-अभिनेता
जब लूटी गयी अस्मत अबलाओं की।
तब कहाँ थे ये साहित्यकार,
जब हुए थे 'उन' पर अत्याचार।

मूक बधिर से बैठे थे तब,
ये तथाकथित से माननीय।
तब असहिष्णुता कहाँ गयी थी,
जब हत्या हुई थी लाखों की।

राजनीति से प्रेरित हैं,
कपटी कुटिल ये माननीय।
देश की साख बिगाड़ने को,
आतुर हैं ये माननीय।

कैसे बैठे हो तुम
अपने घर में सुकून से।
जब कश्मीरी पंडित हैं,
दूर अपने कुटुंब से।

बाज़ नहीं आते हो तुम,
अपने कुटिल विचारों से।
करते हो राजनीति तुम,
मासूमों की लाशों पे।

-- © निशान्त पन्त "निशु"


Sunday, September 13, 2015

हिंदी - राष्ट्र भाषा

देश का मान है हिंदी।
देश का सम्मान है हिंदी।
देश की शान है हिंदी।
देश की पहचान है हिंदी।

हर दिल की जान है हिंदी।
शब्दों की पहचान है हिंदी।
विचारों का प्रवाह है हिंदी।
लबों पर मुस्कान है हिंदी।

'भारतेंदु' की सोच है हिंदी।
'प्रेमचंद' की कल्पना है हिंदी।
'निराला' की कविता है हिंदी।
'पंत' की भावना है हिंदी।

देश की शान है हिंदी।
देश की पहचान है हिंदी।
भारत माँ का मुकुट है हिंदी।
भारत माँ के माथे की बिंदी है हिंदी।


-- © निशान्त पन्त "निशु"

Friday, September 4, 2015

बस यूँ ही!

बस यूँ ही थोडा बहुत लिखा करते हैं।
हाल ए दिल बयां किया करते हैं।

हाल-ए-दिल बयां करना भी जरुरी हैं।
इस जीवन को चलाने के लिये, लिखना भी जरुरी हैं।

अगर न लिखें तो जीवन अधूरा लगता है।
लिखें तो जैसे कोई सपना पूरा लगता है।

सपने न देखो तो आगे न बढ़ पाओगे।
जिंदगी की दौड़ में पीछे छूट जाओगे।

बस यूँ ही थोडा बहुत लिखा करते हैं।
हाल ए दिल बयां किया करते हैं।

- © निशान्त पन्त

प्रेम!

प्रेम!

प्रेम क्या है?
एक एहसास है।
मन का विश्वास है।
पाक और साफ़ है।
ह्रदय में जगी एक आस है।
प्रेम एक चिंगारी है
जो दिल में दबी रहती है
और जीने की चाह बढ़ाती है।

-- © निशान्त पन्त "निशु"

Wednesday, September 2, 2015

जल ही जीवन है।

जल ही जीवन है।

छम-छम छम-छम करके देखो
कैसे बारिश होती है।
टप-टप टप-टप करके देखो
कैसे बारिश होती है।

घोर अँधेरे मेघों को देखो
कैसे नभ में छा जाते हैं।
कैसे छुप कर इन बदरा में
सूर्यदेव इतराते हैं।

हो सवार इन काली घटा पर
इंद्रदेव मुसुकाते हैं।
जल ही जीवन है
यह बात सब को बतलाते हैं।

--
© निशान्त पन्त "निशु"

Thursday, July 23, 2015

शायरी

तलाश जिंदगी की पूरी होगी।
उसे देखकर गुमान भी होगा।
विश्वास रखो अपनी मुहब्बत पर।
एक न एक दिन वो तेरी बाँहो में होगी।

--निशान्त पन्त "निशु"

Friday, April 17, 2015

पर कश्मीर को हासिल करना, औकात नहीं है 'पाक' की।

धरती के इस पाक स्वर्ग पर,
नापाक नजर है पाक की।
पर कश्मीर को हासिल करना,
औकात नहीं है 'पाक' की।

चाहे कितने षड़यंत्र रचा लें,
इन पाक परस्तों के आका।
हिंदुस्तानी सेना के आगे,
ना मिल पायेगा इनको मौका।

लाख जतन कर लें ये चाहे,
इनको असफल ही है होना।
क्यूंकि कश्मीर की धरती की रक्षा को
तैनात है हिंदुस्तानी सैनिक तान कर अपना सीना।

देशभक्ति से ऒत प्रोत,
देश का हर एक सैनिक है।
देश की खातिर जान लुटाने
का सपना मन में काबिज़ है।

नापाक इरादे मन में रखकर,
यहाँ "पाक" घुसपैठ करता है।
पर हिंदुस्तानी फौजों के आगे,
हर आतंकी जान गंवाता है।

जय हो हिन्द की सेना की जिसने,
भारत का मान बढाया है।
आतंकियों के नापाक इरादों,
को जिसने मिटटी में मिलाया है।
लेकर हाथ में अपना तिरंगा,
देश का परचम लहराया है।


-- © निशान्त पन्त

Saturday, March 14, 2015

तलाश

जिंदगी की तलाश में,
गुज़रते हैं दिन मेरे।
तलाश है कि पूरी होती नहीं।
समय सीमा समाप्त होती नहीं।
ह्रदय की वेदना कम होती नहीं।

कब ज्ञान होगा जीवन के मूलाधार का!
कब उस परम ब्रह्म की प्राप्ति होगी!
इसी सोच में चल रहा है जीवन।
कभी तो दिवा स्वप्न से निकलकर,
परम सत्य की प्राप्ति होगी।

ना जाने ये तलाश कब पूरी होगी!
कब नए जीवन की शुरुवात होगी!
कब होगा जीवन में अंधकार का खात्मा!
कब खुशियों भरी सुनहरी सुबह होगी!


---© निशान्त पन्त 'निशु'

Monday, March 9, 2015

ख्वाब

शायर नहीं हूँ मैं लेकिन,
शायरी लिखने का ख्वाब रखता हूँ।
आशिक नहीं हूँ मैं लेकिन,
आशिकी करने का ख्वाब रखता हूँ।

दीवाना नहीं हूँ मैं लेकिन,
दिल्लगी करने की तमन्ना रखता हूँ।
कोई दिल में नहीं है लेकिन,
दिल देने की तमन्ना रखता हूँ।

कांटे है इश्क की राह में बेशुमार,
फिर भी नंगे पैर चलने की चाहत रखता हूँ।
दिल में जो ख्वाब अधूरा है,
उसे पूरा करने का ख्वाब देखता हूँ।


---© निशान्त पन्त

Sunday, March 8, 2015

तस्वीर

तस्वीर तेरी देख कर,
दिन गुजरे याद आ जाते हैं।
प्यार के पल और मस्ती,
के फ़साने याद आ जाते हैं।

रहते थे तेरी जुल्फों घने साये में,
वो घने साये याद आ जाते हैं।
तस्वीर तेरी देख कर,
दिन गुजरे याद आ जाते हैं।

घूमते थे जब बाँहों में बाँह डाले हुए,
वो ख़ुशी के पल याद आ जाते हैं।
तस्वीर तेरी देख कर,
दिन गुजरे याद आ जाते हैं।

कंधे पर मेरे रख कर सर अपना,
जब तुम साथ चला करती थीं।
दिन वो सुहाने याद आते हैं।

रख कर मेरे सीने पर सर अपना,
जब तुम धडकनें महसूस करती थीं।
पल वो दीवाने याद आते हैं।

तस्वीर तेरी देख कर,
दिन गुजरे याद आ जाते हैं।
प्यार के पल और मस्ती,
के फ़साने याद आ जाते हैं।


--© निशान्त पन्त

Saturday, February 21, 2015

मूक दर्शक

कोई मस्ताना कहता है,
कोई परवाना कहता है।
मेरे दिल की गहराई में झांको,
तेरा चेहरा झलकता है।

तू मुझसे चली गयी,
मेरे दिल को अखरता है।
तू मुझसे दूर है लेकिन,
दिल के करीब लगती है।

मैं तेरे प्यार में पागल,
तू मेरे प्यार की दीवानी।
ये तेरा दिल समझता है,
या मेरा दिल समझता है।

इस दुनिया को तेरा मेरा,
रिश्ता बेमाना लगता है।
हमारे रिश्ते की पवित्रता को,
केवल खुदा समझता है।

ये दुनिया वाले लोग हैं,
केवल वही चार लोग।
जिनका नाम ले ले कर,
रिश्तेदार उलाहना देते हैं।
कि तुमने किया गलत कुछ भी,
बोल बोल कर हमारी जान ले लेंगे।

ना बोले पलट कर कुछ भी,
तब भी यही प्रक्रिया होगी।
नहीं तो भरी महफ़िल में,
द्रोपदी सी चीर हरण होगी।

इन सबसे बचना है तो,
बुलंद अपनी आवाज करो।
नहीं तो मूक दर्शक से,
तालियाँ बजाओ तुम।


© निशान्त पन्त "निशु"

Thursday, February 19, 2015

बनावटी दुनिया

पक्षियों का कलरव,
पानी की कलकल
फूलों की सुगंध
सब कुछ खो गया
कंकरीट के जंगल में।

मशीनी मानव,
इंसान रुपी दानव,
अबलाओं की चीखें,
मानवता का ह्रास,
इस बनावटी दुनिया में।

सब सुविधाएं इस दुनिया में,
नहीं है तो केवल-
मानसिक शांति,
आपसी प्रेम, आत्मीयता एवं बंधुत्व,
इस बनावटी दुनिया में।


© निशान्त पन्त "निशु"

Wednesday, February 11, 2015

सर्वश्रेष्ठ है मानव जीवन

जीवन चक्र यह दुनिया का, जो आया है वो जायेगा।
माटी की मूरत है इन्सान, एक दिन माटी में मिल जायेगा।
घर-मकान और ये धन-दौलत, सब पीछे ही रह जायेगा।

मत भागो तुम धन के पीछे, रिश्ते नातों का मान रखो।
माता-पिता की सेवा करने का, तुम मन में संकल्प रखो।

सर्वश्रेष्ठ है मानव जीवन, बड़े जतन से मिलता है।
सब कुछ हाथ में तेरे बन्दे, मौका न बार-बार मिलता है।

बोल न बोलें बुरे किसी से, सभी से मन में प्रेम रखें।
धन से मदद करें न चाहे, पर वचनों को मधुर रखें।

करो सभी कुछ इस जीवन में, पर इतना भी ध्यान रहे।
जब हो अंतिम घड़ियाँ जीवन की, मन में न कोई संताप रहे।

केवल धन-दौलत के पीछे, कभी न पूरा ध्यान रहे।
मृत्यु कड़वा सच है जीवन का, यह हमेशा संज्ञान रहे।

जीवन चक्र यह दुनिया का, जो आया है वो जायेगा।
माटी की मूरत है इन्सान, एक दिन माटी में मिल जायेगा।
घर-मकान और ये धन-दौलत, सब पीछे ही रह जायेगा।

© कवि "निशान्त पन्त"

Saturday, January 24, 2015

जीवन के पहलु

जीवन के पहलु अनेक
अदभुद एवं विस्मयकारी
समझ सका ना कोई इसको
किये परंतु जतन अनेक।


एक समय लगता सब स्थिर
दूजे पल होता गतिमान
ये जीवन का कड़ा नियम है
न समझ सका हर इंसान।


मिली सफलता, आया अभिमान
मिली हार, आया रोना
हुआ सफल उसका जीवन
जो सत्य झूठ से परे हुआ।


©निशान्त पन्त

Thursday, January 22, 2015

रास्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति भारतीय मीडिया का गलत रवैया

आरएसएस एक देश भक्त संगठन है। इसके ऊपर ऊँगली उठाने वालों को पहले आरएसएस के बारे में ठीक से जानकारी जुटानी चाहिये तत्पश्चात किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये।

नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमि

मैंने खुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बंधित विद्यालय में अरुण (एलकेजी) कक्षा से अष्टम (आठवीं) कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की है एवं संघ की शाखाएं भी देखी हैं परन्तु मैंने ऐसा कभी भी नहीं पाया कि संघ किसी संदिग्ध गतिविधि में संलिप्त था। हमेशा से विद्यालयों में सर्व धर्म सम्मान का पाठ पढ़ाया जाता था। आचार्य (शिक्षक) जी ने हमेशा सभी धार्मिक पुस्तकों को एक ज्ञान देने वाली बताया। संघ की शाखाएं व्यक्ति को स्वावलंबी एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने का ज्ञान देती हैं।

बात रही की संघ धार्मिक उन्माद फैलता है तो उसका जवाब मैं अपने शब्दों में देना चाहूँगा कि सभी धर्मों का सम्मान करो, सभी लोगों को सम्मान दो परन्तु एक बात का सदैव ध्यान रखो कि अपने धर्म की हानि न होने पाए।

आजकल धर्मपरिवर्तन को लेकर भारतीय मीडिया बहुत ज्यादा सक्रिय हो गयी है। मैं मीडिया से यह कहना चाहूँगा की यही मीडिया तब कहाँ थी जब गरीब हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करवाया जा रहा था?

हिन्दू धर्म ही एक एसा धर्म है जिसने अपने प्रसार के लिए आजतक धर्म परिवर्तन का सहारा नहीं लिया। उदहारण ले लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, इलाहाबाद जैसे शहरों में जा कर देखिये कैसे विदेशी लोग भी हिन्दू धर्म से आकर्षित होकर खुद चले आते हैं। क्या इसे भी मीडिया जबरन धर्म परिवर्तन कहेगी?

बड़े बड़े नेता सेकुलरिज्म का पाठ पढ़ाते नजर आ जाते है। अगर कोई भी किसी धर्म विशेष पर टिप्पणी कर दे तो वो धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वाला घोषित कर दिया जाता है। ठीक उसके विपरीत कोई भी आकर हिन्दुओं के खिलाफ कुछ भी कह जाता है तो ये सेक्युलर नेता मूकदर्शक बने रह जाते हैं। मेरा भारतीय मीडिया से भी निवेदन है कि वो भी सभी धर्मों का सम्मान करे एवं अपनी टीआरप़ी बढ़ाने के लिए हिन्दू धर्म के लोगों की भावना के साथ खिलवाड़ न करे।


निशान्त पन्त