Wednesday, November 4, 2015

तथाकथित असहिष्णुता - व्यंग्य

राजनीति से प्रेरित होकर असहिष्णुता को मुद्दा बनाकर पुरुस्कार वापस करने वाले तथाकथित लेखकों, साहित्यकारों, नेताओं, अभिनेताओं व अन्य पर एक व्यंग्यात्मक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ संभवतः मेरी अन्य कविताओं की भातिं ही आप इसे पसंद करेंगे।

तथाकथित असहिष्णुता - व्यंग्य

सोचो उन पर क्या बीती है,
पीछे पच्चीस सालों में।
दूर हुए वो जन्मभूमि से,
भटके दर दर सालों में।

तब कहाँ थे ये नेता-अभिनेता
जब लूटी गयी अस्मत अबलाओं की।
तब कहाँ थे ये साहित्यकार,
जब हुए थे 'उन' पर अत्याचार।

मूक बधिर से बैठे थे तब,
ये तथाकथित से माननीय।
तब असहिष्णुता कहाँ गयी थी,
जब हत्या हुई थी लाखों की।

राजनीति से प्रेरित हैं,
कपटी कुटिल ये माननीय।
देश की साख बिगाड़ने को,
आतुर हैं ये माननीय।

कैसे बैठे हो तुम
अपने घर में सुकून से।
जब कश्मीरी पंडित हैं,
दूर अपने कुटुंब से।

बाज़ नहीं आते हो तुम,
अपने कुटिल विचारों से।
करते हो राजनीति तुम,
मासूमों की लाशों पे।

-- © निशान्त पन्त "निशु"