Monday, August 5, 2013

वायु प्रदूषण और मौसम का बदलता अंदाज़

जैसे-जैसे वायु प्रदूषण  बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे मौसम भी अपना मिजाज बदल रहा है। गर्मी पड़ रही है तो इतनी पड़ रही  है कि  सालों पुराने रिकॉर्ड तोड़ती जा रही है ठीक ऐसा ही सर्दी के मामले मैं भी है।  इसलिए दोस्तों हमको वायु प्रदूषण को किसी भी हालत मैं रोकना है।

जितनी तेज़ी से ये प्रदूषण बढ़ रहा है मुझे तो लगता है की सांस लेने के लिए शुद्ध वायु मिलनी भी बहुत मुश्किल हो जाएगी। प्रदूषण को समाप्त तो नहीं किया जा सकता परन्तु इसकी रोकथाम की जा सकती है। इसके लिए हमको वृक्षारोपण करना पड़ेगा और ग्रीन हाउस गैसों का उत्पादन भी कम करना होगा। हमको चाहिए कि हम निजी वाहनों की बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें।

दोस्तों सब कुछ हमारे हाथों मैं ही है, चाहे तो बना दें, चाहे तो बिगाड़ दें।

दोस्तों हमको अपने जीवन का अंदाज़ बदलना होगा, नहीं तो अगर मौसम ने अपना अंदाज़ बदल लिया तो हमारा जीना दुर्भर हो जायेगा।

निशान्त पन्त

Monday, July 22, 2013

भगवान् का घर : व्यवसायिक संस्थान या मनोरंजन स्थल

मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि उसने भगवान् का भी व्यवसायीकरण कर दिया है. कहीं भी मंदिरों मैं जाओ तो सारी वस्तुएं बहुत महंगी मिलती हैं. भगवान की पूजा-अर्चना के लिए भी वीआईपी कतारें लगती है. अच्छे ढंग से पूजा करने के लिए जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ती है. मनुष्यों ने भगवान के घर पर तक अतिक्रमण कर दिया है.

एक समय था कि मनुष्य अपने पापों का बोझ कम करने के लिए, मन्नत मांगने के लिए व मन की शांति के लिए भगवान के द्वार जाता था. परन्तु अब भगवान् के घर की परिभाषा ही बदल गयी है. भगवान के द्वार को मनुष्यों ने मनोरंजन स्थल समझ लिया है.

केदारनाथ धाम मैं आई आपदा शायद ईश्वर के द्वारा स्वार्थी मानव जाति के लिए एक संकेत हो कि "उनके घर मैं जो अतिक्रमण करेगा उसका यही हश्र होगा."

निशान्त पन्त

Wednesday, May 29, 2013

क्या आप स्वतंत्र हैं?

भारत को आज़ाद हुए ६६ साल बीत चुके हैं लेकिन हम आज भी स्वतंत्र नहीं हो पाए हैं. फर्क सिर्फ इतना है की पहले हम गोरे अंग्रेजों के गुलाम थे और आज काले अंग्रेजों (भ्रष्ट नेताओं) के गुलाम बन चुके हैं.

देश की कानून व्यवस्था इतनी खोखली हो चुकी है जिसका कोई जवाब नहीं. बलात्कार पीड़ित महिला पुलिस थाने मैं रिपोर्ट लिखाने जाती है तो पुलिस उसको ही पकड़ लेती है, सड़क में चल रहा कोई राहगीर किसी दुर्घटना पीड़ित व्यक्ति को हॉस्पिटल ले जाता है तो डॉक्टर बोलता है की ये पुलिस केस है पहले पुलिस मैं रिपोर्ट कराओ फिर इलाज होगा, सरकारी ऑफिस में किसी काम के लिए जाओ तो चपरासी अधिकारी से मिलाने के लिए पैसे मांगता है, अधिकारी से किसी ऐसे काम को कराना हो जो की आपका हक है के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं. देश की पुलिस भ्रष्ट नेताओ के हाथ की कठपुतली बन गयी है. कानून व्यस्था सिर्फ आम आदमी के लिए ही है. नेताओ के ऊपर कानून व्यस्था लागू ही नहीं होती है. एक चोर हज़ार रूपये चुराता है तो उसको पुलिस पकड़ लेती है और जेल में डाल देती है. अगर इस देश के भ्रष्ट नेता लाखों , करोड़ो रूपये डकार जाते हैं उनका पुलिस कुछ भी नहीं कर पाती है.

अर्थात कानून आम आदमी के लिए अलग हिसाब से काम करता है और भ्रष्ट नेताओं, माननीयों के लिए अलग.

क्या आप अब भी समझते हैं कि आप स्वतंत्र है? जवाब आपको खुद सोचना है.

अगर आपका जवाब "हाँ" है तो जैसा चल रहा है उसे मूक दर्शक कि तरह देखते और सुनते रहें.

और अगर आपका जवाब "नहीं" है तो कृपया मूक दर्शक बने रहने कि बजाय इस खोखली व्यस्था के खिलाफ कड़े कदम उठाएं. आपके साथ कुछ भी गलत हो तो उसको सहने के बजाये उसका विरोध करें. क्यूँकि किसी  महान व्यक्ति ने कहा था कि "जुर्म करने वाले से सहने वाला ज्यादा गुनहेगार होता है.



साभार
निशान्त पन्त

Wednesday, March 27, 2013

आम आदमी

हम आम आदमी हैं, पिसते आये हैं.
लेकिन ये कब तक चलेगा?
हम आम आदमी हैं, लुटते आये हैं.
लेकन ये कब तक चलेगा?

हम आम आदमी हैं, भ्रष्ट नेताओं ने हमारा खून चूसा है.
हम कब तक अपना खून चुसवाएंगे?
ये तो भ्रष्ट नेता है, इनका पेट कभी नहीं भरता है!
ये तो आम जनता का खून चूसते आये है, और चूसते रहेंगे.

जनता को बेवक़ूफ़ बना ये सत्ता में आते हैं.
कुर्सी पाने के बाद जनता को भूल जाते हैं.
हम आम जनता है, सब हमारे हाथ में है.
इस बार इन पापियों को सबक सिखाना है.
ईमानदार व्यक्ति को ही अपना मत देना है.

आम आदमी की ताकत का एहसास इन देश द्रोहियों को दिलाना है.
इस बार के चुनाव में इनको नाकों चने चबवाना है.


साभार
निशांत "अकेला"

Thursday, March 21, 2013

सुबह

रोज़ सुबह जब ठंडी हवा, चेहरे को छू कर जाती है.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

रोज़ सुबह जब सूरज की किरणें, चेहरे को छू जाती हैं.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

रोज सुबह जब चिड़ियों की चहचाहट, कानों में गूंजा करती है.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

रोज सुबह जब नदियों की कलकल, कानों में सुनाई देती है.
मेरे तन और मन में, एक मस्ती सी छा जाती है.

साभार
© निशान्त पन्त

Wednesday, March 20, 2013

चलो फिर से वर्तमान में आ जायें

हर तरफ गरीबी है, हर तरफ बेबसी है.
हर तरफ लाचारी है, हर तरफ बेकारी है.
मासूम जनता की, बस यही एक बीमारी है.

देश में हाहाकार है, हर तरफ बेरोजगार है.
दो वक़्त की रोटी नहीं, किस्मत बड़ी बेकार है.
सोचता है दिल यही, कि वो कितना लाचार है.

सोचता था जो कभी, पढ़ लिख कर रोजगार पायेगा.
क्या पता था मासूम को, सब मिटटी में मिल जायेगा?
टूट जायेगा हर सपना, भविष्य बड़ा रुलाएगा.

सोचता है कि वो दिन बचपन के बड़े सुहाने थे.
दादी की कहानियां और मस्ती के फ़साने थे.
जब रोटी के लिए नाकों चने ना चबाने थे.

काश वो बचपन के दिन, लौट के फिर आ जायें!
और हम अपनी मां के आँचल में छुप जायें!
पर ये अब मुमकिन नहीं, चलो फिर से वर्तमान में आ जायें.


© निशान्त पन्त

Monday, February 11, 2013

दोस्ती

दोस्ती भी एक अजीब पहेली है जिसको कोई पूरा नहीं बूझ पाया है.
दोस्ती एक पवित्र रिश्ता है जिसको हर कोई नहीं समझ पाया है.

किस्मत वालों को नसीब होती है सच्ची दोस्ती.
नहीं तो साथ चलने वाला हर बंदा दोस्त होता.


© निशान्त पन्त

Saturday, February 2, 2013

"याद आते है दोस्तों के साथ बिताये हुए वो पल"

याद आते है दोस्तों के साथ बिताये हुए वो पल.
जब न कोई टेंशन थी, न थी कोई उलझन.

वो साथ-साथ कॉलेज जाना, साथ-साथ पढाई करना.
वो दोस्तों के टिफ़िन से लंच करना, कैंटीन मैं चाय पीना.

वो दोस्तों के साथ-साथ क्लास बंक मारना.
वो दोस्तों के साथ मूवी देखने जाना.

देखते ही देखते हम सब पास-आउट हो गए.
सबकुछ अचानक से बदल गया, दोस्तों का साथ छूट गया.

हर किसी कि प्राथमिकता बदल गयी.
और दोस्ती एक फॉर्मेलिटी मैं बदल गयी.

अब कोई भी किसी के लिए समय नहीं निकाल पाता है.
दोस्तों के साथ बिताया हुआ हर पल मुझे याद आता है.

जब भी याद आते है वो पल, आँखें हो जाती हैं नम.
दोस्तों यही है जिंदगी, जहाँ होता है कभी ख़ुशी कभी गम.

याद आते है दोस्तों के साथ बिताये हुए वो पल.
जब न कोई टेंशन थी, न थी कोई उलझन.


साभार
© "निशान्त पन्त निशु"

Tuesday, January 29, 2013

असली लुटेरे कौन?

प्यारे दोस्तों, आप सभी के लिए एक छोटा सा व्यंग्य पेश है....


गब्बर: अरे ओ सांभा! सरकार कितना इनाम रखी है हमारे ऊपर?

सांभा: सरदार पूरे १०० करोड़

गब्बर: इतना कम? इससे ज्यादा कीमत का तो चारा इस देश के नेता खा जाते हैं और बैशाखियाँ, ताबूत इत्यादि बेच कर खा जातें हैं. तो मेरे ऊपर इतने कम का इनाम क्यूँ? बहुत नाइंसाफी है.....

सांभा: क्या करें सरदार, डाकुओं से खतरा तो केवल छोटे मोटे गावों को है. हम तो केवल जमाखोरों, जमीदारों इत्यादि को लूटते हैं लेकिन हम से बढ़े लुटेरे तो ये भ्रष्ट नेता हैं जो देश की भोली-भाली, गरीब जनता को लूटते हैं.

इसलिए असली लुटेरे कौन है? हम या इस देश के भ्रष्ट नेता?

साभार
"अकेला"

Tuesday, January 22, 2013

आजकल जेब मैं पैसे नहीं रहते मेरे.

आजकल जेब मैं पैसे नहीं रहते मेरे.
बोलो कभी देखा है तुमने, मुझे पैसे खर्चते हुए?

जब भी डाला है जेब मैं हाथ, तो खाली पाया है.
नेता कहतें हैं कि, पैसा कहीं और छुपाया है!
हमने देखा है गरीबी को, बड़े करीब से.

सारा पैसा नेता की जेब मैं आया है.
गरीब के हाथ भला कभी कुछ आया है?
बदनसीबी भी जैसे, हमसफ़र बनी है.

नींद उड़ गयी है, पेट खाली है.
रात दिन आँखों मैं, अच्छा खाना है.
खाली पेट किसी को, मरते हुए कभी देखा है?

आजकल जेब मैं पैसे नहीं रहते मेरे.
बोलो कभी देखा है तुमने, मुझे पैसे खर्चते हुए?

साभार
©  निशान्त पन्त

Friday, January 4, 2013

चुनावी वादे

चलते चलते, राह में हमको मिल गए नेता जी.
हमने पूछा, कहाँ चल दिए नेता जी?

नेता जी ने कहा आज पड़ोंस के शहर में हमारा भाषण है.
हमने फ़िल्मी अभिनेत्री बुलाई है, और ढेर साडी भीड़ जुटाई है.

आप तो जानते ही हैं, आज कल नेताओ की कौन सुनने आता है.
वो तो इन अभिनेताओं का जलवा है, नहीं तो रैली में दिखते केवल कार्यकर्ता हैं.

इन लोगों को दिखा दिखा कर हम अपनी बात जनता को सुनाते हैं.
नहीं तो इंसान क्या, जानवर भी हमारी घिसी पिटी बातें सुनकर बोर हो जाते हैं.

हम ने कहा नेता जी....
तो ऐसा करिए, इस बार जो वादे कर रहे हैं उनमें से एक तो पूरा करिए!

नेता जी मुस्कुरा कर बोले, भाई अकेला...
अगर वादे पूरे कर देंगे, तो अगली बार चुनावी रैली में नए वादे कहाँ से लायेंगे?

और रही बात अगले चुनाव की, तो अगली चुनावी रैली में, एक मस्त अभिनेत्री बुलाएँगे.
युवा तो युवा, बुजुर्ग भी रैली में दौड़े चले आयेंगे.


साभार
© निशान्त पन्त