Monday, July 22, 2013

भगवान् का घर : व्यवसायिक संस्थान या मनोरंजन स्थल

मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि उसने भगवान् का भी व्यवसायीकरण कर दिया है. कहीं भी मंदिरों मैं जाओ तो सारी वस्तुएं बहुत महंगी मिलती हैं. भगवान की पूजा-अर्चना के लिए भी वीआईपी कतारें लगती है. अच्छे ढंग से पूजा करने के लिए जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ती है. मनुष्यों ने भगवान के घर पर तक अतिक्रमण कर दिया है.

एक समय था कि मनुष्य अपने पापों का बोझ कम करने के लिए, मन्नत मांगने के लिए व मन की शांति के लिए भगवान के द्वार जाता था. परन्तु अब भगवान् के घर की परिभाषा ही बदल गयी है. भगवान के द्वार को मनुष्यों ने मनोरंजन स्थल समझ लिया है.

केदारनाथ धाम मैं आई आपदा शायद ईश्वर के द्वारा स्वार्थी मानव जाति के लिए एक संकेत हो कि "उनके घर मैं जो अतिक्रमण करेगा उसका यही हश्र होगा."

निशान्त पन्त