Friday, April 8, 2016

तथाकथित सेक्युलर नेताओं की वोटों की भूख

वोटों के भूखे तथाकथित नेताओं के ऊपर एक व्यंग्यात्मक कविता लिख रहा हूँ। वस्तुतः सभी को मेरी अन्य कविताओं की भांति पसंद आएगी। इस कविता से मेरी मंशा किसी के ह्रदय को चोट पहुँचाने की नहीं है। यह एक व्यंग्य है व्यंग्य की भांति लिया जाये।

तथाकथित सेक्युलर नेताओं की वोटों की भूख:-

ये केवल वोटों के भूखे, कपटी कुटिल शिकारी हैं।
मौके पर चौका मारने की, इनको अदभुत बीमारी है।

सूंघ कर वोटों की खुशबु, ये दौड़े चले आते हैं।
जहाँ न दिखे वोट बैंक इनको, ये अंतर्ध्यान हो जाते हैं।

इनकी महिमा का अब मैं, क्या गुणगान करूँ।
छलिया हैं ये, सबको छलते, क्या महिमागान करूँ।

जेनयू का दंगल याद है? इसमें ये सारे कूदे थे।
वोटों की भूख के पीछे, भारत माँ को भूले थे।

दादरी में वोटों के पीछे, क्या विधवा विलाप भूल गए?
मालदा के घटनाक्रम पर, ये फिर से अंतर्ध्यान हुए।

सर्वधर्म सम्मान करो तुम, पर धर्म का अपने मान रखो।
सेक्युलर बनने की खातिर, हिन्दू हित को न ताक पर रखो।

अपनी भूख मिटाने में ये, आम जन को भूल गए।
तनख्वाहें लाखों में अपनी, करके अंतर्ध्यान हुए।

--निशान्त पन्त