Thursday, May 5, 2016

माँ

नौं माह गर्भ में रख कर,
रक्त से अपने पोषित कर,
कड़ी वेदना सह कर भी,
नव जीवन का निर्माण किया।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।

दुनिया में आकर शिशु ने,
जो पहला शब्द उदघोष् किया,
वो करता इंगित उस स्त्री को,
जिसने हमको जन्म दिया।

"माँ" शब्द के उदघोष् मात्र से,
जिस स्त्री का मन विभोर हुआ।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।

खुद भूखी रह कर जो माँ,
बच्चों की अन्नपूर्णा हुई।
गर्मी में पंखा झलकर, हमें सुलाती,
खुद स्वेद से सराबोर हुई।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।

-© -निशान्त पन्त "निशु"

Sunday, May 1, 2016

जीवन में आवश्यक!

जीवन में आवश्यक हैं कुछ बदलाव।
अन्यथा जीवन में आ जायेगा ठहराव।
जीवन नाम है चलते जाना
हमेशा मुस्कुराना, गुनगुनाना।
अपनाओ हंसी और संजीदगी,
थोड़ी ख़ुशी और दीवानगी।
ठुकरा दो तुम अहम् को,
अपना लो तुम प्रेम को।
ऐसे जियो हर दिन को तुम,
जैसे हो वो अंतिम दिन।
खुशियाँ ही खुशियाँ तुम बाँटो,
ग़मों के सबको तुम हर लो।

--© निशान्त पन्त "निशु"