Sunday, June 3, 2018

क्यूँ

लिखूं या न लिखूं,
ये सोचता हूँ क्यूँ?
चलूँ या न चलूँ,
ये सोचता हूँ क्यूँ?
रहूँ या न रहूँ,
ये सोचता हूँ क्यूँ?

बस ये "क्यूँ" ही क्यूँ?

क्यूँ ये जीवन आधार है,
इसी क्यूँ को सोचने में,
दिन ये ढल जाता है क्यूँ?
सुहानी शाम आती है क्यूँ?
अंधेरा पसर जाता है क्यूँ?
निशा छा जाती है क्यूँ?
बस इसी सोच में,
भोर हो जाती है क्यूँ?


-साभार
© निशान्त पन्त "निशु"